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White मजबूर हैं भाई , मजदूर हैं भाई। जिंदगी हमें क

White मजबूर हैं भाई , मजदूर हैं भाई।
जिंदगी हमें कहाँ ले आयी।।

एक समय था, जब थे गांव में।
अपने खेतों और पेड़ों की छॉव में।।
कुछ सुकून था, लेकिन गम भी थे साथ में।
फसलों से उम्मीदें थी हाथ में।।

लेकिन उम्मीदें लगीं फिसलने।
जब फसलों के दाम न मिले उतने।।
तब ये सोच दिमाग में आयी।
घर बार छोड़ शहर में बस गए भाई।।

मजबूर हैं भाई , मजदूर हैं भाई।
जिंदगी हमें कहाँ ले आयी।।

गांव से शहर सब आते गए।
जिंदगी से ठोकरे सब खाते गए।।
प्यार तो अपने परिवार से आज भी है।
कोई शौक नहीं मज़बूरी खींच लायी।।

मजबूर हैं भाई , मजदूर हैं भाई।
जिंदगी हमें कहाँ ले आयी।।

सुबह हुई निकल गयी भाई।
काम की तलाश हर जगह छायी।।
काम मिले तो घर में हो रोटी ।
न मिले तो कैसे नींद आये।।

मजबूर हैं भाई , मजदूर हैं भाई।
जिंदगी हमें कहाँ ले आयी।।

©Manpreet Gurjar
  #majdur