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इश्क़ का फ़रिश्ता, बदलता रहा रिश्ता..! अपनों में छु

इश्क़ का फ़रिश्ता,
बदलता रहा रिश्ता..!

अपनों में छुपे ग़ैरों का,
बदन रहा रिस्ता..!

बदला ईमान मन में शैतान,
दुश्मनी ठान ख़ुद को घिसता..!

ख़्वाब हुए खँडहर,
मौत का तनिक न डर..!

दुनिया के ढकोसले में,
जीवन हरपल यूँ पिसता..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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