ग़ज़ल-ए-इश्क़ (अनुशीर्षक में पढ़ें) ग़ज़ल-ए-इश्क़ ज़िंदगी में हमारी इश्क़ ने दस्तक दी मानो पतझड़ में बहार ने दस्तक दी ना समझ पाये हम रवायत इश्क़ की ग़म ने ही जहां में हमारे दस्तक दी