रखो दिल पर सख़्त पहरा, लगे ना आघात गहरा, बीतने दो रात निर्जन, दिन भी निकलेगा सुनहरा, मन की गतिविधियाँ विचारो, मन बड़ा नादान ठहरा, लोभ-लालच मित्र इसके, चमन भी बन जाए सहरा, कामनाएँ करे पोषित, स्वार्थवश मापदण्ड दोहरा, अहम का होता उपासक, वक़्त के चौसर का मोहरा, अधोगति को त्याग 'गुंजन', भजो मन हरि का ककहरा, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #सख़्त पहरा#