रोशनी के बीच कितने हैं अंधेरों के निशां इन पे ही चल कर मिला है रोशनी से कारवां ले चलो तुम दूर मुझको चौंधियाहट से परे हों जहां इक मैं और इक छोटा सा मेरा आशियाँ बढ़ते बढ़ते बीज बन कर पेड़ हैं लहरा रहे और मैं बन कर के मिट्टी था जहां पर हूँ वहां कर नुमाइश ज़ख्मों की इल्ज़ाम मुझ पर रख दिये मैं भला कैसे दिलाऊं अपने ज़ख्मों को ज़ुबां आह से निकली थी वो जो महफिलों में छा गयी बद्दुआ पर भी ग़ज़ल का हो गया उनको गुमां #अंजलिउवाच #रोशनीकेबीच #अंधेरा #निशां #जहां #कारवां #दास्तां #YQdidi