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रोशनी के बीच कितने हैं अंधेरों के निशां इन पे ही च

रोशनी के बीच कितने हैं अंधेरों के निशां
इन पे ही चल कर मिला है रोशनी से कारवां

ले चलो तुम दूर मुझको चौंधियाहट से परे
हों जहां इक मैं और इक छोटा सा मेरा आशियाँ

बढ़ते बढ़ते बीज बन कर पेड़ हैं लहरा रहे
और मैं बन कर के मिट्टी था जहां पर हूँ वहां

कर नुमाइश ज़ख्मों की इल्ज़ाम मुझ पर रख दिये
मैं भला कैसे दिलाऊं अपने ज़ख्मों को ज़ुबां

आह से निकली थी वो जो महफिलों में छा गयी
बद्दुआ पर भी ग़ज़ल का हो गया उनको गुमां

 #अंजलिउवाच #रोशनीकेबीच #अंधेरा #निशां #जहां #कारवां #दास्तां #YQdidi
रोशनी के बीच कितने हैं अंधेरों के निशां
इन पे ही चल कर मिला है रोशनी से कारवां

ले चलो तुम दूर मुझको चौंधियाहट से परे
हों जहां इक मैं और इक छोटा सा मेरा आशियाँ

बढ़ते बढ़ते बीज बन कर पेड़ हैं लहरा रहे
और मैं बन कर के मिट्टी था जहां पर हूँ वहां

कर नुमाइश ज़ख्मों की इल्ज़ाम मुझ पर रख दिये
मैं भला कैसे दिलाऊं अपने ज़ख्मों को ज़ुबां

आह से निकली थी वो जो महफिलों में छा गयी
बद्दुआ पर भी ग़ज़ल का हो गया उनको गुमां

 #अंजलिउवाच #रोशनीकेबीच #अंधेरा #निशां #जहां #कारवां #दास्तां #YQdidi