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प्रथम प्रेम दिवस पर कविता

प्रथम प्रेम दिवस पर कविता                                                 🌹🌹🌹🌹🌹🌹                                                   प्यार की किस्से कैसे होते शायद अब हमको मालूम है.                      नींद तो मेरी टूट गई है शायद यह भी उसको मालूम है.                     यह फागुन का महीना अब तो सावन जैसा लगता है.                   उसके कानों का कुंडल अब तो कनक धतूरा सा दिखता है.             उसके अधरो की लाली उगते सूरज सी लगती है.                        जब घूंघट पट से नयन झांकती वो मुझसे मिलती है.                           तब चंचल नयनो में कजरा चहका चहका सा लगता है.                        जब गजब घनेरी जुल्फों को वो लहराती है.                                 तब उसकी जुल्फों का गजरा रजनीगंधा लगता है                        जब उसके दिल की धड़कन धक धक धक करती है.                तब उसके मन की प्रेम पवन मेरे​ हृदय पर दस्तक देती है.                 जब बरस बदरिया सावन की झम झमा झम बरसी है                  तब वह जोगन सी बन दीवानी पिया मिलन को तरसी है.               वह प्रेमभाव की प्यासी है शायद अब हमको मालूम है.              नींद मेरी टूट गई है शायद यह भी उसको मालूम है.                            विपिन यादव द्वारा लिखित Vipin yadav
प्रथम प्रेम दिवस पर कविता                                                 🌹🌹🌹🌹🌹🌹                                                   प्यार की किस्से कैसे होते शायद अब हमको मालूम है.                      नींद तो मेरी टूट गई है शायद यह भी उसको मालूम है.                     यह फागुन का महीना अब तो सावन जैसा लगता है.                   उसके कानों का कुंडल अब तो कनक धतूरा सा दिखता है.             उसके अधरो की लाली उगते सूरज सी लगती है.                        जब घूंघट पट से नयन झांकती वो मुझसे मिलती है.                           तब चंचल नयनो में कजरा चहका चहका सा लगता है.                        जब गजब घनेरी जुल्फों को वो लहराती है.                                 तब उसकी जुल्फों का गजरा रजनीगंधा लगता है                        जब उसके दिल की धड़कन धक धक धक करती है.                तब उसके मन की प्रेम पवन मेरे​ हृदय पर दस्तक देती है.                 जब बरस बदरिया सावन की झम झमा झम बरसी है                  तब वह जोगन सी बन दीवानी पिया मिलन को तरसी है.               वह प्रेमभाव की प्यासी है शायद अब हमको मालूम है.              नींद मेरी टूट गई है शायद यह भी उसको मालूम है.                            विपिन यादव द्वारा लिखित Vipin yadav