आसमां के चाँद को, अपनी मोहब्बत का हार पहनाया था, सम्पूर्ण कायनात के नज़रों से अपनी मोहब्बत को बचाया था। दुनिया की मुकम्मल खुशी, उसके दामन में निसार करता था, मैं अपने आसमां के चाँद से, दिलों जान से प्यार करता था। लम्हा-ए-फ़ुसूँ महफूज़ ना रहा, जानें किसकी नज़र लग गई, तौहीन-ए-मोहब्बत ना सह पाई, दिल पर उसके असर कर गई। अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़ के हद ने, उसके दिल पर ज़द कर गई, दास्तान-ए- मोहब्बत से अफ़सुर्दा , दुनिया से रुखसत कर गई। हक़ीक़त यही, अपनी मोहब्बत के दामन में आग लगाया है मैंने, जी हाँ, अपनी मोहब्बत के जनाजे को ख़ुद ही उठाया है मैंने। लम्हा-ए-फ़ुसूँ = हसीं पल, अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़= निराशा और क्षीणता, अफ़सुर्दा= निराश, ज़द -- आघात, "प्रिय लेखकों" कृपया "Caption" को ध्यानपूर्वक पढ़े।