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प्रेरणा नूपुर की ध्वनि खो जाए तो नृत्य अधूरा कहल

प्रेरणा 

नूपुर की ध्वनि खो जाए तो नृत्य अधूरा कहलाता है, 
आब गंवा देने पर मोती केवल कंकर रह जाता है.

जब तक साँसों में ख़ुशबू हो घर का आँगन महका रहता, 
जब तक प्यार भरा हो स्वर में हर गलियारा चहका रहता,
 प्रेम-रहित मानव का जीवन केवल दानव  बन जाता है, 
आब गंवा देने पर मोती केवल कंकर रह जाता है.

जितना ताप सहा है जिसने उतना ही वह निखर गया है, 
जितना ही जो सिमटा निज में उतना ही वह बिखर गया है, 
रूप, गंध, रस दे जो जितना उतना ही वह हर्षाता है, 
नूपुर की ध्वनि खो जाए तो नृत्य अधूरा कहलाता है.

कूक न हो तो कोयल कैसी, नीर नहीं तो कैसी नदिया, 
विनय नहीं तो पौरुष कैसा, सुमन नहीं तो कैसी बगिया, 
जिस में गरिमा नहीं रही हो वह कब जीवन कहलाता है.
आब गंवा देने पर मोती केवल कंकर रह जाता है.

जादू वह जो सिर चढ़ बोले, रूप वही जो पागल कर दे,
नयन कि जिनमें लाज भरी हो,गीत वही जो घायल कर दे, 
शील गंवा देने पर यौवन केवल बदबू फैलाता है, 
आब गंवा देने पर मोती केवल कंकर रह जाता है.
                                    -----श्री निर्दोष हिसारी पिताजी श्री निर्दोष हिसारी जी की रचना
प्रेरणा 

नूपुर की ध्वनि खो जाए तो नृत्य अधूरा कहलाता है, 
आब गंवा देने पर मोती केवल कंकर रह जाता है.

जब तक साँसों में ख़ुशबू हो घर का आँगन महका रहता, 
जब तक प्यार भरा हो स्वर में हर गलियारा चहका रहता,
 प्रेम-रहित मानव का जीवन केवल दानव  बन जाता है, 
आब गंवा देने पर मोती केवल कंकर रह जाता है.

जितना ताप सहा है जिसने उतना ही वह निखर गया है, 
जितना ही जो सिमटा निज में उतना ही वह बिखर गया है, 
रूप, गंध, रस दे जो जितना उतना ही वह हर्षाता है, 
नूपुर की ध्वनि खो जाए तो नृत्य अधूरा कहलाता है.

कूक न हो तो कोयल कैसी, नीर नहीं तो कैसी नदिया, 
विनय नहीं तो पौरुष कैसा, सुमन नहीं तो कैसी बगिया, 
जिस में गरिमा नहीं रही हो वह कब जीवन कहलाता है.
आब गंवा देने पर मोती केवल कंकर रह जाता है.

जादू वह जो सिर चढ़ बोले, रूप वही जो पागल कर दे,
नयन कि जिनमें लाज भरी हो,गीत वही जो घायल कर दे, 
शील गंवा देने पर यौवन केवल बदबू फैलाता है, 
आब गंवा देने पर मोती केवल कंकर रह जाता है.
                                    -----श्री निर्दोष हिसारी पिताजी श्री निर्दोष हिसारी जी की रचना