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तक ले जाती है, क्या खबर, तुम भी बदले से लग रहे हो

तक ले जाती है, क्या खबर, 
तुम भी बदले से लग रहे हो, 
हम भी ज़रा बदल गये, 
इम्तिहानों के मंज़रों से गुज़रकर, 
जब हम दोनों एक हो गये, 
सनम कहाँ तक है साथ का! 
इम्तिहान शायद यह नहीं, 
साथ गुज़ार रहें हैं पल, 
क्या ये हमारी पहचान नहीं। 
खामखाँ की गिनती हमें मुजरिम बना देगी, 
इम्तिहानों को छोड़कर चलो पलों को जानदार बनाएँ।

©Sita Prasad
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