व्यंग्य कविता शीर्षक "अनजान प्रिये" अब लिया है मैंने ठान प्रिये। नहीं गंवानी निज जान प्रिये।। पहले चलता था सीना तान प्रिये। अब हो गया सिरकिया बान प्रिये।। तुम हो पर्वत पठार प्रिये। मैं तिनका हूँ नादान प्रिये।१। अब लिया है मैंने ठान प्रिये। नहीं गंवानी निज जान प्रिये।। तुम हो हीरे की खान प्रिये। मैं हूँ कोयला बदनाम प्रिये। तुम विदुषी हो महान प्रिये। था मैं इससे अज्ञान प्रिये।२। 😆🤔😎 :-आशीष द्विवेदी ©Bazirao Ashish #innuendo