नामुमकिन सच """""""""""""""" कल ज़मीं पर आसमां था पानी से उठता एक धुआं था सब नामुमकिन सच हुए थे कल तू मेरे साथ थी बेमौसम बरसात थी चुप्पी में भी बात थी... चंदा खुद सितारे-सा था दरिया भी किनारे-सा था तेरे लबों पे बर्फ का टुकड़ा जलते हुए अंगारे-सा था मेरी और तेरी धड़कन करने लगी ख़ुराफ़ात थी... हम-तुम दोनों ठहर गये थे रास्ते लेकिन गुज़र गये थे दोनों-के-दोनों गीले थे हम आँखों में जो उतर गये थे हमदोनों ही बीत गये कल पर बची हुई मुलाक़ात थी... बेमौसम बरसात थी चुप्पी में भी बात थी... ©Ghumnam Gautam #ज़मीं #ghumnamgautam