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#कन्यादान #कन्यादान भाग2 मेरा कमरा संजना के साथ व

#कन्यादान #कन्यादान
भाग2

मेरा कमरा संजना के साथ वाला कमरा था।संजना के कमरे से अपने कमरे तक के चार कदम चलने में बहुत तकलीफ हो रही थी।पैरों को जैसे लकवा मार गया था।आंखों से आँसू रुक ही नहीं रहे थे।कुछ फैसले जीवन से बड़े होते हैं,हम चाहें ना चाहें,मगर सच को अपनाकर आगे बढ़ना ही पड़ता है।संजना मेरी बहू है।दस साल पहले बड़े चाव से अपनी पुत्रवधु बना उसे घर लाई थी।पाँच साल पहले मेरा बेटा एक एक्सीडेंट में चल बसा,संजना तब केवल तीस साल की थी।दो बच्चों की माँ बन चुकी थी वो।उसे इतना गहरा सदमा लगा था कि सम्भालना मुश्किल हो गया था उसे। दो साल तक उसका इलाज चलता रहा।इतना बिखर गई थी कि बच्चों की भी सुध नहीं थी उसे।मैंने बड़ी हिम्मत से खुद को और बच्चों को संभाला था।बेटे के जाने के तीन साल बाद मैंने उसे नोकरी करने भेज दिया ताकि घर से बाहर निकलकर दिल थोड़ा हल्का हो जाये।वो मेरे बेटे को बहुत प्यार करती थी,उसे भूल ही नही पा रही थी,बस बुत सी बन गयी थी।क्या पहना है,क्या कहा रही है,बच्चे कैसे हैं, कुछ भी सुध नहीं रही थी उसे।
#कन्यादान #कन्यादान
भाग2

मेरा कमरा संजना के साथ वाला कमरा था।संजना के कमरे से अपने कमरे तक के चार कदम चलने में बहुत तकलीफ हो रही थी।पैरों को जैसे लकवा मार गया था।आंखों से आँसू रुक ही नहीं रहे थे।कुछ फैसले जीवन से बड़े होते हैं,हम चाहें ना चाहें,मगर सच को अपनाकर आगे बढ़ना ही पड़ता है।संजना मेरी बहू है।दस साल पहले बड़े चाव से अपनी पुत्रवधु बना उसे घर लाई थी।पाँच साल पहले मेरा बेटा एक एक्सीडेंट में चल बसा,संजना तब केवल तीस साल की थी।दो बच्चों की माँ बन चुकी थी वो।उसे इतना गहरा सदमा लगा था कि सम्भालना मुश्किल हो गया था उसे। दो साल तक उसका इलाज चलता रहा।इतना बिखर गई थी कि बच्चों की भी सुध नहीं थी उसे।मैंने बड़ी हिम्मत से खुद को और बच्चों को संभाला था।बेटे के जाने के तीन साल बाद मैंने उसे नोकरी करने भेज दिया ताकि घर से बाहर निकलकर दिल थोड़ा हल्का हो जाये।वो मेरे बेटे को बहुत प्यार करती थी,उसे भूल ही नही पा रही थी,बस बुत सी बन गयी थी।क्या पहना है,क्या कहा रही है,बच्चे कैसे हैं, कुछ भी सुध नहीं रही थी उसे।

#कन्यादान भाग2 मेरा कमरा संजना के साथ वाला कमरा था।संजना के कमरे से अपने कमरे तक के चार कदम चलने में बहुत तकलीफ हो रही थी।पैरों को जैसे लकवा मार गया था।आंखों से आँसू रुक ही नहीं रहे थे।कुछ फैसले जीवन से बड़े होते हैं,हम चाहें ना चाहें,मगर सच को अपनाकर आगे बढ़ना ही पड़ता है।संजना मेरी बहू है।दस साल पहले बड़े चाव से अपनी पुत्रवधु बना उसे घर लाई थी।पाँच साल पहले मेरा बेटा एक एक्सीडेंट में चल बसा,संजना तब केवल तीस साल की थी।दो बच्चों की माँ बन चुकी थी वो।उसे इतना गहरा सदमा लगा था कि सम्भालना मुश्किल हो गया था उसे। दो साल तक उसका इलाज चलता रहा।इतना बिखर गई थी कि बच्चों की भी सुध नहीं थी उसे।मैंने बड़ी हिम्मत से खुद को और बच्चों को संभाला था।बेटे के जाने के तीन साल बाद मैंने उसे नोकरी करने भेज दिया ताकि घर से बाहर निकलकर दिल थोड़ा हल्का हो जाये।वो मेरे बेटे को बहुत प्यार करती थी,उसे भूल ही नही पा रही थी,बस बुत सी बन गयी थी।क्या पहना है,क्या कहा रही है,बच्चे कैसे हैं, कुछ भी सुध नहीं रही थी उसे।