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मेरे गुरूजन, भगवन मेरे। तम से लाये दीपक मेरे। जो

मेरे गुरूजन, भगवन मेरे।
तम से लाये दीपक मेरे।

जो ज्ञान चक्षु तुम खोल गये।
जीवन को मेरे तोल गये।

अब राही हूं जीवन पथ का।
है ज्योति जली है सदा सच का।

तुम बिन ये सफर नामुमकिन था।
कितना मन मेरा कुंठित था।

मेरे गुरूजन,  भगवन मेरे।
तम से लाये, लाये दीपक मेरे।

©Anand Prakash Nautiyal tnautiyal
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