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लोगों मे जंगली बहशीपन पनप रहा है इंसानियत की निशा

लोगों मे जंगली बहशीपन  पनप रहा है
इंसानियत की निशानिया  भी धरती से  गायब हो रही है
सादगी  पसंद  इस देश  को ये  क्या  हो  रहा है
सन्यासी और  संतों की  रूहें भी छलावे  कर रही है
सब कुछ  बदला पर सोच का दायरा  अब तक नहीं बदला
ज़िंदा  लाशें  आज भी  खैर की  पनाह  ढूंढ  रही है
जो चमन गुलज़ार था कभी  बर्बादी की ओर बढ़ रहा
मज़हब की  आड़  मे अब दुश्मनीया पाली जा रही  हैँ
हर शहर मे  कहर की  लहर चल रही है
सबकी  दीवांनगी  सिर्फ  कुर्सी क़े लिए मचल  रही है
इन दिनों  मैखानो मे  शराब की  किल्लत  बढ़ रही है
क्योंकि मस्जिद और मंदिरो मे मुफ्त की  अफीम.. बन्ट. रही है

©Parasram Arora कहर की  लहर  .......
लोगों मे जंगली बहशीपन  पनप रहा है
इंसानियत की निशानिया  भी धरती से  गायब हो रही है
सादगी  पसंद  इस देश  को ये  क्या  हो  रहा है
सन्यासी और  संतों की  रूहें भी छलावे  कर रही है
सब कुछ  बदला पर सोच का दायरा  अब तक नहीं बदला
ज़िंदा  लाशें  आज भी  खैर की  पनाह  ढूंढ  रही है
जो चमन गुलज़ार था कभी  बर्बादी की ओर बढ़ रहा
मज़हब की  आड़  मे अब दुश्मनीया पाली जा रही  हैँ
हर शहर मे  कहर की  लहर चल रही है
सबकी  दीवांनगी  सिर्फ  कुर्सी क़े लिए मचल  रही है
इन दिनों  मैखानो मे  शराब की  किल्लत  बढ़ रही है
क्योंकि मस्जिद और मंदिरो मे मुफ्त की  अफीम.. बन्ट. रही है

©Parasram Arora कहर की  लहर  .......

कहर की लहर .......