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जाने किस मृगतृष्णा में भटकता, इत उत चारों ओर। चे

जाने किस मृगतृष्णा में भटकता, इत उत  चारों ओर। 
चेहरे पर खामोशी चाहे, मन का पंछी करे शोर।। 

कभी चाहिए दुनिया के, हर वैभव उल्लास।
कभी चाहिए आसपास ही अपना कोई खास।। 

खुद की तनिक सफलता पर भी जी भरकर इतराए।
दिखे गगन में और कोई तो क्यों इतना घबराए।। 

सोने के पिंजरे में रहकर खुश कैसे हो सकता है! 
मोह माया के पाश में बंध कर एकाकी हो रहता है। 

यह एकाकीपन ला देता है, खामोशी घनघोर। 
लड़ते लड़ते खामोशी से, मन का पंछी करे शोर।

©Anita Agarwal #man ka panchi
जाने किस मृगतृष्णा में भटकता, इत उत  चारों ओर। 
चेहरे पर खामोशी चाहे, मन का पंछी करे शोर।। 

कभी चाहिए दुनिया के, हर वैभव उल्लास।
कभी चाहिए आसपास ही अपना कोई खास।। 

खुद की तनिक सफलता पर भी जी भरकर इतराए।
दिखे गगन में और कोई तो क्यों इतना घबराए।। 

सोने के पिंजरे में रहकर खुश कैसे हो सकता है! 
मोह माया के पाश में बंध कर एकाकी हो रहता है। 

यह एकाकीपन ला देता है, खामोशी घनघोर। 
लड़ते लड़ते खामोशी से, मन का पंछी करे शोर।

©Anita Agarwal #man ka panchi
anitaagarwal4475

Anita Agarwal

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