गिल्ली डंडा खेल पुराने । बचपन के दिन बडे सुहाने ।। जब भी आती यादें उनकी । करते सबसे बातें उनकी ।। पहले खेल हुआ करते थे । मन में जोश भरा करते थे ।। चाहे कबड्डी हो य खो खो । मातु-पिता ना करते भौ भौ ।। स्वस्थ शरीर व चुश्ती फुरती भाग दौड़ में करते मस्ती मन पतंग सबका हो जाता । बिन पँख फिर वो उड़ता जाता ।। सबके मन को वह भा लेते । यह कविता जो तुम पढ़ लेते ।। उन खेलों का क्या था मतलब । सीख आज जो तुम अब लेते ।। स्वस्थ स्वास्थ का वही खजाने । अपना सुंदर खेल पुराने ।। जब भी आती यादें उनकी । करते सबसे बातें उनकी ।। २८/०२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गिल्ली डंडा खेल पुराने । बचपन के दिन बडे सुहाने ।। जब भी आती यादें उनकी । करते सबसे बातें उनकी ।। पहले खेल हुआ करते थे । मन में जोश भरा करते थे ।। चाहे कबड्डी हो य खो खो ।