जलता दीपक सा था। रोशन करनें की चाहत थीं। परियों का वह रोशनी में देखता था। जलता देख रोता था। कोई रूह जला रही थी तो कोई स्वयं को तपा रही थीं। किसी ने किया था अर्पण समर्पण था। आज भी अधेरें में अनकहे कहानियाँ थीं। जगम जींदादिलीप्यार एक प्यार जीदगीं था। तितलियों की उजाले... रात जुगुनू की आशाओं की थीं। #दीपक #प्रणय-प्रत्यंचा #प्रेम #prazhantrivedi01@yahoo.com