ना काम से ना हराम से कोई इच्छा नहीं बदनाम से तुम छू लेना मैं छू लूंगा खुदा खुदा के नाम से . . . हमको गंगा का घाट मिले | पूरी कविता कैप्शन में पढ़ें समा नहीं सकता शब्दों में है जो मेरे तन के अंदर मन के अंदर मंदिर के अंदर