खाई हमें देखने को मिलती है तरह तरह की खाई जगह जगह जीवन भर हमको पड़ती रोज दिखाई कोई चाहता इसे पाटना मगर इसे कोई खोदे कोई देखकर भय से काँपे खून के आँसू रो दे किसी की रक्षा करती है यह किसी की बनती काल जब रिश्तों के बीच ये आती बन जाती जंजाल इसके बीच में आ जाने से बढ़ जाती है दूरी कोई कहे यह बहुत जरूरी कोई कहता मजबूरी बेखुद इसमें भरता पानी जब होती बरसात अगर डूब जाती हैं खुशियाँ फिर न लगतीं हाथ ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #खाई