फागुन आते ही यहाँ , उडने लगे गुलाल । भर पिचकारी मारते , सुनों गाँव के ग्वाल ।। मैं तो उनके रंग में , लगती आज कमाल । अबके फागुन हम मिले , कर लो दूर मलाल । अब कुछ भी कहना नहीं , डालो पिया गुलाल । देख-देख बहकूँ तुम्हें , बदले अपनी चाल ।। फागुन मे होते सभी , सुन लो दूर मलाल । सुनों पिया का प्रेम से , आज चूम लो गाल ।। तुम आ जाओ तो सुनो , बदले मेरा हाल । देख-देख फिर आपको , नैना करें कमाल ।। कोरे कागज से नही , खुले जिया का राज । नैनों की भाषा पढ़ो , क्या कहता है आज ।। ०१/०३/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR फागुन आते ही यहाँ , उडने लगे गुलाल । भर पिचकारी मारते , सुनों गाँव के ग्वाल ।। मैं तो उनके रंग में , लगती आज कमाल । अबके फागुन हम मिले , कर लो दूर मलाल । अब कुछ भी कहना नहीं , डालो पिया गुलाल । देख-देख बहकूँ तुम्हें , बदले अपनी चाल ।।