सरसी छन्द गीत :- निकल रहा है धन काला अब ,मोदी जी को देख । काँप रहे गद्दार राज्य में , योगी जी को देख । निकल रहा है धन काला अब.... मैं जनता का हूँ सेवक जो , भरते रहे हुँकार । घर के उनसे निकल रहा है , नोटों का भण्डार ।। क्या कहें चमत्कार हुआ या, बिगड़ी इनकी रेख । निकल रहा है धन काला .... खूब उठाते हैं उँगली यह , मोदी पे कुछ लोग । जनता सेवा करने में जो , किए खूब उपभोग ।। घर पर तो व्यापार नही था , बदली कैसी रेख । निकल रहा है धन काला अब ...... सोच नहीं जो हम तुम पाये , मोदी ने ली सोच । कुछ तो गड़बड़ भैय्या मेरे , आयी कैसी लोच ।। मार-मार कर मंतर कैसे , बनकर बैठे शेख़ । निकल रहा है धन काला अब ... निकल रहा है धन काला अब ,मोदी जी को देख । काँप रहे गद्दार राज्य में , योगी जी को देख । महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सरसी छन्द गीत :- निकल रहा है धन काला अब ,मोदी जी को देख । काँप रहे गद्दार राज्य में , योगी जी को देख ।