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शीर्षक - लिबास दे रहा है मन... उलझें से मन, कुछ

शीर्षक - लिबास दे रहा है मन...



उलझें से मन, कुछ खुदरे खुदरे से बातें हैं
हां तेरी अब कोई बातें रही ही नहीं, तो कौन सी नई बातें हैं,
शौक़, महफ़िल, तजुर्बा, हां कुछ शब्द भी बदले हैं
कुछ थोड़े थोड़े विचार के साथ उसका लिबास भी बदलें है।।

मेरे अंदर के वो आदतों का बेघर सा दिल बूझ चुका है
इंतजार की वह लंबी लंबी राहें परस्पर अवरोध में मिल चुकी है 
थकान थोड़ी सी नटखट बदमाश वही बचपना ही दिख रही है
जब भी कोई पूछता है बचाकर क्या क्या रखें हो तुम......
या फिर  कही गहरी सोच के ग़ुलाम तो नहीं हो गये हो तुम...
फिर वहीं बचपना लौट शब्दों को लिबास दे  रहा है।
कुछ थोड़े थोड़े विचार के साथ मेरा भी लिबास बदल रहा है...

©Dev Rishi #longdrive #लिबास_ए_इश्क़