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न जाने कितने युगो से बही जा रही गंगा और तट है कि ख

न जाने कितने युगो से बही जा रही गंगा
और तट है कि खडे है मूक दर्शक बन कर
और वे  उबते भी  नही इसका  शाश्वत बहाव देख कर

हकीकत तो  आ ही जायेगी  सबके सामने एक न एक दिन
तू चाहे  कितने  ही   ऊंचे दर्ज़े का अभिनय कर

 इम्तिहान तेरी जिंदगी के न जाने कितने हो चुके
अब तू इम्तिहानो के  नतीज़ो का सब्र से इंतज़ार कर

सुबह होते  ही घर से निकलते है रात पडे लौटते है
नही  जानते   ये धूप कब आती कब जाती  अपने घर

©Parasram Arora न जाने.. कितने युगो से.....
न जाने कितने युगो से बही जा रही गंगा
और तट है कि खडे है मूक दर्शक बन कर
और वे  उबते भी  नही इसका  शाश्वत बहाव देख कर

हकीकत तो  आ ही जायेगी  सबके सामने एक न एक दिन
तू चाहे  कितने  ही   ऊंचे दर्ज़े का अभिनय कर

 इम्तिहान तेरी जिंदगी के न जाने कितने हो चुके
अब तू इम्तिहानो के  नतीज़ो का सब्र से इंतज़ार कर

सुबह होते  ही घर से निकलते है रात पडे लौटते है
नही  जानते   ये धूप कब आती कब जाती  अपने घर

©Parasram Arora न जाने.. कितने युगो से.....

न जाने.. कितने युगो से..... #कविता