मुसलसल खो जाता हूं तेरी तलाश में जब भी खुद को अकेला पाता हूं कहीं खुद से ही मिल जाता हूं जब भी खुद को अकेला पाता हूं धरातल की खुशबू अलग ही पाता हूं मिट्टी हाथों में लिए उसको चूम जाता हूं जब भी खुद को अकेला पाता हूं मेहताब का मुआयना बदल जाता है मेरे नज़रिए से जब भी अकेले पन्न में उसको घूरता जाता हूं कड़ी धूप में भी चल लेता हूं ठंडी छांव समझ क्या कहूं मैं गर्मी भूल जाता हूं जब भी खुद को अकेला पाता हूं मूसलसल खो जाता हूं जब भी खुद को अकेला पाता हूं। #daastaneishq मुसलसल खो जाता हूं.