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कि...........

कि...........                                                
मेरे शब्दों में आ उलझ
भ्रम में भ्रमित हो,       
         दंभी हूंकार जो भरते हो.......
इक क्षण में वो                                                 
चकनाचूर हो,                                                   
रसातल को शरण लेंगे.............                         
और कहेंगे.......                
       थम जा श्रवण से कर्ण श्रापित हो 
                                    नयन जलधि बहेंगे..........

कि बूझो ध्यान से                                                  
पाओगे तुम अपने गढ़न में भी.......                         
न केवल काया कंचन में 
  वरन् मलिन मन में भी.....
कलाएं हस्त मेरी, 
                  और कौशल शिल्पकारी भी......
             तुमको बनाया निज निमित्त,
                               सुन मैं वो नारी भी.....

कि पग पग पर छला                 
 छल छल तुम्हें पुरूष बना            
बना मैं बचती हूं........
कि मैं वो चरित हूं जो तुम संग व्यूह रचती हूं........

                       @पुष्पवृतियां

©Pushpvritiya बात तब की है जब ईश्वर ने पुरूष और स्त्री की रचना की....
स्त्री ने ईश्वर से कहा..यह तो अन्याय है प्रभु...जीवन चक्र की दो धुरी के निर्माण में आपने एक को इतना बलशाली दूसरे को उसके समकक्ष तक का भी नही.......तब ईश्वर ने स्त्रियों को त्रिया चरित्र का उपहार दिया...और कहा यदि तुम इसे उपयोग में ला पाओ तो सभी बलशाली अपने अधीन पाओगी.....
किवन्दिती या मज़ाक मात्र...पता नही पर इसी पर आधारित कुछ कच्ची पक्की सी पंक्तियां

कुछ यूं ही सा....
कि...........                                                
मेरे शब्दों में आ उलझ
भ्रम में भ्रमित हो,       
         दंभी हूंकार जो भरते हो.......
इक क्षण में वो                                                 
चकनाचूर हो,                                                   
रसातल को शरण लेंगे.............                         
और कहेंगे.......                
       थम जा श्रवण से कर्ण श्रापित हो 
                                    नयन जलधि बहेंगे..........

कि बूझो ध्यान से                                                  
पाओगे तुम अपने गढ़न में भी.......                         
न केवल काया कंचन में 
  वरन् मलिन मन में भी.....
कलाएं हस्त मेरी, 
                  और कौशल शिल्पकारी भी......
             तुमको बनाया निज निमित्त,
                               सुन मैं वो नारी भी.....

कि पग पग पर छला                 
 छल छल तुम्हें पुरूष बना            
बना मैं बचती हूं........
कि मैं वो चरित हूं जो तुम संग व्यूह रचती हूं........

                       @पुष्पवृतियां

©Pushpvritiya बात तब की है जब ईश्वर ने पुरूष और स्त्री की रचना की....
स्त्री ने ईश्वर से कहा..यह तो अन्याय है प्रभु...जीवन चक्र की दो धुरी के निर्माण में आपने एक को इतना बलशाली दूसरे को उसके समकक्ष तक का भी नही.......तब ईश्वर ने स्त्रियों को त्रिया चरित्र का उपहार दिया...और कहा यदि तुम इसे उपयोग में ला पाओ तो सभी बलशाली अपने अधीन पाओगी.....
किवन्दिती या मज़ाक मात्र...पता नही पर इसी पर आधारित कुछ कच्ची पक्की सी पंक्तियां

कुछ यूं ही सा....
pushpad8829

Pushpvritiya

Silver Star
New Creator

बात तब की है जब ईश्वर ने पुरूष और स्त्री की रचना की.... स्त्री ने ईश्वर से कहा..यह तो अन्याय है प्रभु...जीवन चक्र की दो धुरी के निर्माण में आपने एक को इतना बलशाली दूसरे को उसके समकक्ष तक का भी नही.......तब ईश्वर ने स्त्रियों को त्रिया चरित्र का उपहार दिया...और कहा यदि तुम इसे उपयोग में ला पाओ तो सभी बलशाली अपने अधीन पाओगी..... किवन्दिती या मज़ाक मात्र...पता नही पर इसी पर आधारित कुछ कच्ची पक्की सी पंक्तियां कुछ यूं ही सा.... #कविता