मन्थरा , हैं हम ऋणी तुम्हारे। तुम न होतीं तो दण्डक वन शापित ही रह जाता। रामचंद्र की शरणस्थली का गौरव क्यों पाता।। ऋषि मुनियों से दूर प्रभु की दूरी कैसे होती। प्रभु दर्शन की चिर अभिलाषा पूरी कैसे होती।। तेरी कृपा से ही केवट ने , रघुवर चरण पखारे। मन्थरा , हैं हम ऋणी तुम्हारे।। ©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन' #ramayan #Love मन्थरा , हैं हम ऋणी तुम्हारे।