तुम्ही मेरे जीवन का हो मूल दर्पण । की तुम्हीं को करें हम यहां फूल अर्पण । महक ही तुम्हारी अब हृदय में बसी है करूँ जान भी मैं अब तुम्हीं को समर्पण ।। तुम्ही मेरे जीवन का हो मूल दर्पण .... महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR *तुम्ही मेरे जीवन का हो मूल दर्पण ।* *की तुम्हीं को करें हम यहां फूल अर्पण ।* *महक ही तुम्हारी अब हृदय में बसी है* *करूँ जान भी मैं अब तुम्हीं को समर्पण ।।* *तुम्ही मेरे जीवन का हो मूल दर्पण ....* *महेन्द्र सिंह प्रखर*