यूं निगाहें चुराने से क्या फ़ायदा बात को अब छुपाने से क्या फ़ायदा। हो गई जब मुहोब्बत निभाते चलो छोड़ कर हाथ जाने से क्या फ़ायदा। दोष दोनों का था दोनों का था कुसूर तोहमतें ख़ुद पे लाने से क्या फ़ायदा। जब चराग़-ए-मोहब्बत जला ही चुके फ़ूंक से फिर बुझाने से क्या फ़ायदा। ईश्क़ करने से पहले ज़रा सोचते अब बहाने बनाने से क्या फ़ायदा। चोट खाने से पहले तो संभले नहीं बाद मरहम लगाने से क्या फ़ायदा। आप तो ईश्क़ करने को बेताब थे अब "पिनाकी" बहाने से क्या फ़ायदा। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #क्या_फायदा?