जो ग़रीबों की बस्ती में रोशन न हो, ऐसा बिजली का इक जाल डाला रहे। जो कहे सच, वही सबसे ख़तरनाक , झूठ हर मोड़ पर हमसे आला रहे। ख़्वाब महलों के सबको दिखाए मगर, उसकी तिज़ोरी पे ताला रहे। बस सियासत का मीठा निवाला रहे, भीड़ ढोलक रहे, राग सबसेआला रहे। वादे हों ऊँचे, हकीकत निचली, हर गली में नया इक हवाला रहे। जिसको ईमानदारी ने भूखा रखा, वो सियासत के क़दमों में डाला रहे। हर ग़लत बात को भी सही कह सके, ऐसा हर एक बन्दा निराला रहे। रंग बदलने की आदत हो जिसमें, ऐसा झूठा कोई मसाला रहे। क़ौम जलती रहे, वो तमाशा करे, और हाथों में सत्ता का प्याला रहे। ये जो कुर्सी की बाज़ीगरी है यहाँ, हर तरफ़ एक छल का उजाला रहे। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर