'अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो नशा बड़ता है शरबें जो शराबों में मिलें आज हम दार पे खेंचे गये जिन बातों पर क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें अब न वो मैं हूँ न तु है न वो माज़ी है “फ़राज़” जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें.." #AhmadFaraz ©navroop singh #faraz