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जीने को और भी आशय मिल सकता था यदि सम्भावनाओ क

जीने  को  और भी  आशय 
मिल सकता था यदि 
सम्भावनाओ का  अंत  न हो जाता इस तरह 
फिर न जाने  क्यों 
पथ मे  शूल  बिछाकर  राह मे  पथ्हर  फैंक कर 
बाधाएं  ख़डी  करते रहे 
हम सागर की शिथिल   सतह पर  लहरों  का 
उत्पात  देखते रहे 
म्रृत  हो चुकी  आशाओ  मे  जबरन 
प्राण वायु  फूंकते   रहे 
दिखा नहीं   कोई भी  परिवर्तन   फिर भी 
हम जैसे थे बस  वैसे  ही  रहे जीने  का आशय.....
जीने  को  और भी  आशय 
मिल सकता था यदि 
सम्भावनाओ का  अंत  न हो जाता इस तरह 
फिर न जाने  क्यों 
पथ मे  शूल  बिछाकर  राह मे  पथ्हर  फैंक कर 
बाधाएं  ख़डी  करते रहे 
हम सागर की शिथिल   सतह पर  लहरों  का 
उत्पात  देखते रहे 
म्रृत  हो चुकी  आशाओ  मे  जबरन 
प्राण वायु  फूंकते   रहे 
दिखा नहीं   कोई भी  परिवर्तन   फिर भी 
हम जैसे थे बस  वैसे  ही  रहे जीने  का आशय.....