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#Nijamuddin फिर उठ रही आज उंगलियां मुझ पर क्या

#Nijamuddin



फिर उठ रही आज उंगलियां मुझ पर 
क्या किया है यह मैंने जानबूझकर
 मैं तो हमेशा से बस साजिशों का शिकार हूं
 क्या लगता है मैं जाहिल हूं,गवार हूं ?

मैंने बस कहा था उनसे कि मेरे बताएं रास्ते पर चलो 
एक जगह जमा हो जाओ फिर देश के कोने-कोने में फैलो
 कैसा वफ़ा इस मुल्क़ से,मैं तो बस मजहब का वफादार हूं
 इतने से क्या मैं मौकापरस्त हूं, क्या मैं गद्दार हूं ?
 
 मैं तो बस लोगों को गुमराह करता हूं
 उनके जख्मों पर मरहम की जगह नमक छिड़कता हूं
मैंने तो बस नफरत की आग में बेबसों को झुलसाया है 
बस लश्क़रों, मुजाहिद्दीनों को ही तो हमने बनाया है
  
 अट्टालिकाओं में खुद रहकर
 जानते हो तुम्हारे हाथों में मैंने पत्थर क्यों दिया ?
 नहीं चाहता कोई बन पाए तुम में से रहीम,औलिया 
 सुख-चैन तुम भटके नौजवानों का नहीं, सिर्फ मैं इसका हकदार हूं
धर्म तो बादशाह है बस,मैं उसका सिपहसालार हूं

 हमने बस मजहब को नए ढंग से परिभाषित किया है
समय-समय पर मानवता को चोट कर साबित किया है
ये भीड़ घोड़ा है और लगाम पकड़ा मैं तो बस,एक घुड़सवार हूंं
क्या नहीं मैं रसूल उस नबी का ? क्या धर्म का ठेकेदार हूं !

 भाईचारे और अमन,बस इनका मैं दुश्मन हूं
 संसार से बंधुत्व खत्म,करने को हीं उत्पन्न  हू़ं
 अगर अपने उद्देश्यों को पूरा कर रहा है,तो क्या मैं गुनहगार हूं
 हूं मैं सौदागर मजहब का और इसलिए करता इसका व्यापार हूं |



                                                                                            - प्रमथ
#Nijamuddin



फिर उठ रही आज उंगलियां मुझ पर 
क्या किया है यह मैंने जानबूझकर
 मैं तो हमेशा से बस साजिशों का शिकार हूं
 क्या लगता है मैं जाहिल हूं,गवार हूं ?

मैंने बस कहा था उनसे कि मेरे बताएं रास्ते पर चलो 
एक जगह जमा हो जाओ फिर देश के कोने-कोने में फैलो
 कैसा वफ़ा इस मुल्क़ से,मैं तो बस मजहब का वफादार हूं
 इतने से क्या मैं मौकापरस्त हूं, क्या मैं गद्दार हूं ?
 
 मैं तो बस लोगों को गुमराह करता हूं
 उनके जख्मों पर मरहम की जगह नमक छिड़कता हूं
मैंने तो बस नफरत की आग में बेबसों को झुलसाया है 
बस लश्क़रों, मुजाहिद्दीनों को ही तो हमने बनाया है
  
 अट्टालिकाओं में खुद रहकर
 जानते हो तुम्हारे हाथों में मैंने पत्थर क्यों दिया ?
 नहीं चाहता कोई बन पाए तुम में से रहीम,औलिया 
 सुख-चैन तुम भटके नौजवानों का नहीं, सिर्फ मैं इसका हकदार हूं
धर्म तो बादशाह है बस,मैं उसका सिपहसालार हूं

 हमने बस मजहब को नए ढंग से परिभाषित किया है
समय-समय पर मानवता को चोट कर साबित किया है
ये भीड़ घोड़ा है और लगाम पकड़ा मैं तो बस,एक घुड़सवार हूंं
क्या नहीं मैं रसूल उस नबी का ? क्या धर्म का ठेकेदार हूं !

 भाईचारे और अमन,बस इनका मैं दुश्मन हूं
 संसार से बंधुत्व खत्म,करने को हीं उत्पन्न  हू़ं
 अगर अपने उद्देश्यों को पूरा कर रहा है,तो क्या मैं गुनहगार हूं
 हूं मैं सौदागर मजहब का और इसलिए करता इसका व्यापार हूं |



                                                                                            - प्रमथ