खाली हाथ अर्थ की जमाखोरी में उम्र खर्च करते रहे लालच की तिजोरी में बेईमानी भरते रहे शैतानों की कुसंगति में सभी अपने छूटते रहे रिश्तों की अस्थियों में खुशियाँ ढूढ़ते रहे समय के चक्रव्यूह में कर्महीन फंसते रहे बाह्य आडंबर करने में असल पूंजी खोते रहे पाँव जब लटके कब्र में कालचक्र दिखने लगे मृत्यु के अंधकार में ज्ञानपुंज चमकने लगे सत्य की आंधियों में स्वर्ण महल ढहने लगे। कुछ न रहा साथ में जैसे आए वैसे जाने लगे। ©अलका मिश्रा ©alka mishra #खाली_हाथ #FindingOneself