ए मेरे वक्त बुरे, तूझे भी मुबारक-ए-यारी हमारी, दर्द-ए-दास्तां सी या किस्से याराने के हो अपने, बख़ूबी निभाई तूने अपनी साझेदारी।। अगर साथ तेरा संग हमारे ना होता, फ़िर आँखों में फ़रेब-ए-नाते लिए ज़रूर, सारी उम्र अक्सर मैं सोता, कि साथ तेरा संग मेरे ना होता, कौन गैर कौन है अपना, पता मुझे फ़िर कैसे ही होता।। कि कभी टूटा सा कभी हारा सा मैं, अंजानो के बज़्म में फ़िरता इक आवारा सा मैं, बिना चमक फ़लक में इक सितारा सा मैं, ज़ख़्मों के मार से ज़ख़्मी बेसहारा सा मैं, संग तेरे लड़ना सीखा है गम़ों से, अपने घाव भरे मैंने बिना मरहमों के, कि यारी तेरी उस ख़ुदा की रहमत सी, संग तेरे ही ज़िंदगी मेरी सलामत सी।। हर तालिम में तेरे हमने, जिना सीखा है, बद्किस्मति के ज़हर को भी, हमने पीना सीखा है।। कि वाबस्ता संग तेरे हमारी, जो थी कभी अपनी बगावत-ए-अदावत सी, मेरे कज़ा तक संग अब तेरे हमें है रहना, कि यही है हमारी अब इक आख़िरी इबादत सी।। ए मेरे वक्त बुरे, तूझे भी मुबारक-ए-यारी हमारी, तूझे भी मुबारक-ए-यारी हमारी।। ए मेरे वक्त बुरे, तूझे भी मुबारक-ए-यारी हमारी, तूझे भी मुबारक-ए-यारी हमारी।।