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यही सोचकर, रातभर,गम,जागा रहता हूँ मैं धूल हूँ ज़मीन

यही सोचकर, रातभर,गम,जागा रहता हूँ
मैं धूल हूँ ज़मीन का,भला चाँद से क्या कहूँ
रहा ख़्वाब भी,है देखता,खुद से ही आईना
मैं रूह से मिलकर भी दिल,नज़रे चुराता हूँ

©paras Dlonelystar
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