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जब खेतों में नंगी काया पल पल तपती रहती है| आँगन मे

जब खेतों में नंगी काया पल पल तपती रहती है|
आँगन में बैठे ख्वाबों के पंख उतिनती रहती है||
बेबस आँखों में बस केवल नीर समाया रहता है|
तब कवि हृदय हुकूमत के प्रति आग उगलने लगता है||
नहीं प्रेम के मधुर मधुर मैं गीत सुनाने आया हूँ|
वाणी की तीखी तीखी तलवार चलाने आया हूँ||

©कवि मनोज कुमार मंजू
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#वाणी_की_तलवार
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