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कोरोना डायरी 19 साल की लड़की बहुत हंसते खेलते मुस

कोरोना डायरी
 19 साल की लड़की बहुत हंसते खेलते मुस्कुराती थी।
12वीं पास करके वह कॉलेज में आई और उसे बहुत शौक था रोज़ कॉलेज जाने का
पर उसे कैद किया गया था पुरानी सोच के साथ 
नहीं जाने दिया जाता था प्रतिदिन कॉलेज इस कारण वह बहुत रोती थी ।
फिर पूछा घरवालों से कि क्यों नहीं जाने देता मुझे कॉलेज रोज तो जवाब आता है दूर बहुत है कुछ हो गया तो पता भी नहीं चलेगा बस मौन हो जाती थी वो लड़की फिर एक दिन उसके पिता की बहुत तबीयत खराब हो गई 4 दिन सेवा में लगातार जुटी रही अपने पिता की नवरात्रि के दिन चल रहे थे।
एक तरफ रामायण का पारायण एक तरफ सप्तशती का पाठ तो दूसरी तरफ एक मौत आने वाली थी घर पर मौत की देवी आंगन में खड़ी थी  महसूस हो रहा था उस लड़की को की कुछ तो घटित होने वाला है, पर बार-बार अपनी नकारात्मकता छुपा रही थी सबसे और मौन होकर झेल रही थी।
अपनी उस नकारात्मकता को नवरात्रि का छठवां दिन ऑफिस से आते हैं उसके पापा ज्वर से तप्त सातवें दिन सांस फूलना आठवें दिन वमन की समस्या नवें दिन हृदय में पीड़ा दसवें दिन सुबह से ही अशांत सी वह लड़की सुबह से खाना गले के नीचे नहीं जा रहा था उसके 
बस यही  सोच रही थी की जो घटना घटित होने वाली है ना घटे चाहे उसके बदले मेरे प्राण ही क्यों ना चले जाएं और यह विचार करते हुए ही पूरा दिन पापा की सेवा में चला गया कभी भाप दिलाना उल्टी करवाना कभी दवाई देना कभी खाना खिलाना जिद करना कि खालो खालो पर फिर भी उनका ना खाना और जैसे-जैसे दिन बढ़ता जाता है अपने अंत की ओर वैसे ही घटना के घटित हो जाने का आभास हो रहा था उस लड़की को रात्रि का भोजन बना पिता को खिलाया गया किंतु वह खाते नहीं थे ‌ छुपा देता थे‌।
कोरोना डायरी
 19 साल की लड़की बहुत हंसते खेलते मुस्कुराती थी।
12वीं पास करके वह कॉलेज में आई और उसे बहुत शौक था रोज़ कॉलेज जाने का
पर उसे कैद किया गया था पुरानी सोच के साथ 
नहीं जाने दिया जाता था प्रतिदिन कॉलेज इस कारण वह बहुत रोती थी ।
फिर पूछा घरवालों से कि क्यों नहीं जाने देता मुझे कॉलेज रोज तो जवाब आता है दूर बहुत है कुछ हो गया तो पता भी नहीं चलेगा बस मौन हो जाती थी वो लड़की फिर एक दिन उसके पिता की बहुत तबीयत खराब हो गई 4 दिन सेवा में लगातार जुटी रही अपने पिता की नवरात्रि के दिन चल रहे थे।
एक तरफ रामायण का पारायण एक तरफ सप्तशती का पाठ तो दूसरी तरफ एक मौत आने वाली थी घर पर मौत की देवी आंगन में खड़ी थी  महसूस हो रहा था उस लड़की को की कुछ तो घटित होने वाला है, पर बार-बार अपनी नकारात्मकता छुपा रही थी सबसे और मौन होकर झेल रही थी।
अपनी उस नकारात्मकता को नवरात्रि का छठवां दिन ऑफिस से आते हैं उसके पापा ज्वर से तप्त सातवें दिन सांस फूलना आठवें दिन वमन की समस्या नवें दिन हृदय में पीड़ा दसवें दिन सुबह से ही अशांत सी वह लड़की सुबह से खाना गले के नीचे नहीं जा रहा था उसके 
बस यही  सोच रही थी की जो घटना घटित होने वाली है ना घटे चाहे उसके बदले मेरे प्राण ही क्यों ना चले जाएं और यह विचार करते हुए ही पूरा दिन पापा की सेवा में चला गया कभी भाप दिलाना उल्टी करवाना कभी दवाई देना कभी खाना खिलाना जिद करना कि खालो खालो पर फिर भी उनका ना खाना और जैसे-जैसे दिन बढ़ता जाता है अपने अंत की ओर वैसे ही घटना के घटित हो जाने का आभास हो रहा था उस लड़की को रात्रि का भोजन बना पिता को खिलाया गया किंतु वह खाते नहीं थे ‌ छुपा देता थे‌।