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हास्य कविता सुकून के दो पल चुराना था सर दर्द का क

हास्य कविता

सुकून के दो पल चुराना था
सर दर्द का किया तभी बहाना था
ननंद को भी तभी आना था
रोटी मुझसे ही बनवा कर खाना था
सर दर्द ऊपर से साड़ी पहनावा था
ससुराल नहीं बवालो का बुलावा था
सास का अलग ही दिखावा था
सर्वश्रेष्ठ खुद को मनवाना था
बहू काम की नहीं
यही तो बात फैलाना था
सुकून के दो पल चुराना था
सर दर्द का किया तभी बहाना था 
मेरा ही नहीं सिर्फ ये अफसाना था
जितनी भी बहुएं  सबका यही दर्द पुराना था
सुकून के दो पल चुराना था
 सर दर्द का किया तभी बहाना था****

©kanchan Yadav
  #ससुराल