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"कौन रुकेगा" कौन किसके लिए रुका औऱ कौन यहां रुके

"कौन रुकेगा"
 
कौन किसके लिए रुका
औऱ कौन यहां रुकेगा
वक़्त का पहिया है जनाब
न रुका है न ही रुकेगा

चले जाना तुम कभी
होकर यहां से बेपरवाह
हवाओं में होगा ज़िक्र तेरा
फिजाओं को भी तेरी चाह

शहर में तेरी यादों को
आने से कौन टोकेगा
मीठी भिनी खुश्बुओं को
महकने से कौन रोकेगा

दीदार का न होगा जुनून
न तेरी चाहत का इंतज़ार
आने पर तेरे आहट नही होगी
और नैनो पर होगा रुखसार

परिंदे को पिंजरे से
मुहब्बत करने से कौन रोकेगा
अजनबी जब हो ही गए तुम
शहर जाने से कौन रोकेगा

उसके रहते उससे ही
एक चाहत सी हो गयी
सुबह-शाम की सलाम-दुआ
इसकी आदत सी हो गयी

किताबों में लिखी इबारत
तेरे सिवा कौन समझेगा
जिंदगी तेरे फ़लसफ़े को
जो तू न चाहे तो कौन रोकेगा
---------------------------------
      @ दिनेश चन्द्र, मुगलसराय
        05 दिसम्बर / 2021

©Naina ki Nazar se दिनेश चंद्र की कविता
"कौन रुकेगा"
 
कौन किसके लिए रुका
औऱ कौन यहां रुकेगा
वक़्त का पहिया है जनाब
न रुका है न ही रुकेगा

चले जाना तुम कभी
होकर यहां से बेपरवाह
हवाओं में होगा ज़िक्र तेरा
फिजाओं को भी तेरी चाह

शहर में तेरी यादों को
आने से कौन टोकेगा
मीठी भिनी खुश्बुओं को
महकने से कौन रोकेगा

दीदार का न होगा जुनून
न तेरी चाहत का इंतज़ार
आने पर तेरे आहट नही होगी
और नैनो पर होगा रुखसार

परिंदे को पिंजरे से
मुहब्बत करने से कौन रोकेगा
अजनबी जब हो ही गए तुम
शहर जाने से कौन रोकेगा

उसके रहते उससे ही
एक चाहत सी हो गयी
सुबह-शाम की सलाम-दुआ
इसकी आदत सी हो गयी

किताबों में लिखी इबारत
तेरे सिवा कौन समझेगा
जिंदगी तेरे फ़लसफ़े को
जो तू न चाहे तो कौन रोकेगा
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      @ दिनेश चन्द्र, मुगलसराय
        05 दिसम्बर / 2021

©Naina ki Nazar se दिनेश चंद्र की कविता

दिनेश चंद्र की कविता #ज़िन्दगी