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Naina ki Nazar se

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Naina ki Nazar se

"डर लगता है"
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डर लगता है ख्वाबों के टूट जाने से, 
डर लगता है अपनों के रूठ जाने से, 
डर लगता है अरमानों के बिखड़ जाने से,
 डर लगता है भावनाओं के मर जाने से,
 डर लगता है खुशियों के खो जाने से,
डर लगता है नए सपने देखने से, 
डर लगता है हंसने से,
डर लगता है कुछ कहने से,
डर लगता है खुद को खोने से किसी का होने से,
डर लगता है खुद के बदल जाने से,
डर लगता है किसी से बिछड़ जाने से,
डर लगता है!डर लगता है !डर लगता है!
और आखिर ये डर एक दिन हकीकत में तब्दील हो ही जाता है।

©Naina ki Nazar se
  #Tulips Naina ki nazar se

#Tulips Naina ki nazar se #कविता

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Naina ki Nazar se

जीते हुवे को मारती है दुनियां,
मरते हुवे को कंधा देती है दुनियां,
बहुत अजीब फितरत है,
न जाने ऐसा क्यों करती है दुनियां?

©Naina ki Nazar se #Tulips naina ki nazar se

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Naina ki Nazar se

"व्यक्ति" मरता है,
मगर "व्यक्तित्व" नहीं।

©Naina ki Nazar se
  # naina ki nazar se # shyari,#kavita#

# naina ki nazar se # shyari,kavita#

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Naina ki Nazar se

आंसुओं ने धो डाले आंखों के कालिख
जो मन पर लगी बात
उसे कैसे धोया जाएं?

©Naina ki Nazar se
  Naina ki nazar se # shyari

Naina ki nazar se # shyari #शायरी

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Naina ki Nazar se

आंसुओं ने धो डाले आंखों के कालिख
जो मन पर लगी बात
उसे कैसे धोया जाएं?

©Naina ki Nazar se
  #outofsight Naina ki nazar se # shyari,man ko baat#

#outofsight Naina ki nazar se # shyari,man ko baat# #शायरी

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Naina ki Nazar se

रूठ कर उनसे
 उन्हे ही मनाते रहे

वो जीत कर हमसे
हमसे ही हारते रहे

जितने करीब थे वो
उतने दूर हो गए

 मिले हम मगर
मुक्कमल न मिल सके,

मेरी एक खता 
सरे आम हो गई

उनकी हर ख़ता
हम दफ्न करते रहे,

वो पाकर हमे
कभी पा न सके

हम ख़ुद को खो कर
उन्हें ख़ुद में उतारते रहे,

जिनको ख़्याल तक मेरा न आया
उन्हें याद कर हम रोते रहे,

गुनेहगार था वो "शख़्स"
मेरे रिश्ते की मौत का,

और वो ख़ुद को
 पाक बताते रहे,

वो गया जब से
फिर नजर न आया कभी,

उसकी तस्वीर को हम
आज भी गले लगाते रहे,

रूठ कर उनसे
उन्हें ही......

©Naina ki Nazar se #apart  Alewar A ##### Suman Zaniyan sheetal pandya मेरे शब्द Mp Raj

apart Alewar A ##### Suman Zaniyan sheetal pandya मेरे शब्द Mp Raj #कविता

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Naina ki Nazar se

🙏🙏
रूठ बैठा संवाद चुप है
उपस्थिति ऐसी कि
अनुपस्थिति चुप है

अब मैं तुझमे शेष  हूँ
नज़रो में तुम्हारे
हृदय और होठो पर
एक चुप विशेष हूँ
बीच दोनो के चुप 
अब अनकहे संवाद 
दम तोड़ रहे है
स्वछंद थी तुम्हारी बातें 
हाँ को ना और ना को हाँ में
बदल रहे है मानकर
चाहता नैनो में ख्वाब बनकर
जिंदा रहना, बचा रहना
दोनो के दरमियाँ अब तो 
बिना बन्धन,रिश्तो के बिना
जो थे संवाद ,चुप है

उम्र भर वह बरसती रही
नदी सागर को तरसती रही
सूने होठो को मीठे बोल दे
खुद तबस्सुम को तरसती रही
बुलन्दियों पर गुमां नही
नज़रो में पाक तू
नही कोई गुनाह तू
लफ्ज़ और लहज़े पर तेरे
बहुत ऐतबार है अब भी मुझे
समक्ष नैनो के खड़ी है
मेरी तू एक उम्र है और
अपनी उम्र से बड़ी है
एक मीठी नदी है तू
नृत्य करते जल संगीत
उसका कलकल गीत चुप है।
--------------- ------------- -------         
   - *दिनेश चन्द्र, मुग़लसराय*
           08 सितम्बर /2022

©Naina ki Nazar se दिनेश चंद्र की कविता

#philosophy

दिनेश चंद्र की कविता #philosophy

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Naina ki Nazar se

"कौन रुकेगा"
 
कौन किसके लिए रुका
औऱ कौन यहां रुकेगा
वक़्त का पहिया है जनाब
न रुका है न ही रुकेगा

चले जाना तुम कभी
होकर यहां से बेपरवाह
हवाओं में होगा ज़िक्र तेरा
फिजाओं को भी तेरी चाह

शहर में तेरी यादों को
आने से कौन टोकेगा
मीठी भिनी खुश्बुओं को
महकने से कौन रोकेगा

दीदार का न होगा जुनून
न तेरी चाहत का इंतज़ार
आने पर तेरे आहट नही होगी
और नैनो पर होगा रुखसार

परिंदे को पिंजरे से
मुहब्बत करने से कौन रोकेगा
अजनबी जब हो ही गए तुम
शहर जाने से कौन रोकेगा

उसके रहते उससे ही
एक चाहत सी हो गयी
सुबह-शाम की सलाम-दुआ
इसकी आदत सी हो गयी

किताबों में लिखी इबारत
तेरे सिवा कौन समझेगा
जिंदगी तेरे फ़लसफ़े को
जो तू न चाहे तो कौन रोकेगा
---------------------------------
      @ दिनेश चन्द्र, मुगलसराय
        05 दिसम्बर / 2021

©Naina ki Nazar se दिनेश चंद्र की कविता

दिनेश चंद्र की कविता #ज़िन्दगी

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Naina ki Nazar se

आज गम -ए -शाम गुजरी
उम्मीदों का आज एक चराग़ बुझा
फिर अंधेरों ने ली गहरी सांस
और उन गहरी सांसों में
मेरे सिसकन ने दम तोड़ा।

©Naina ki Nazar se Naina ki Nazar se

#WalkingInWoods

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Naina ki Nazar se

ग़ज़ल
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घाटों पर जब से पहरा हुआ है
जल नदी का तब से ठहरा हुआ है

बड़ी मछली छोटी को निगलेगी ही
रखवाली में संगीनों का पहरा हुआ है

घाट बंट गए मंदिर मस्जिद के नाम पर
कबीर की छाती पर ज़ख्म गहरा हुआ है

वज़ू का जल या अर्घ का पानी
उठाने वाला हाथ अब डरा हुआ है

जलती आग को बुझाना पानी का धर्म 
आदमी के आँख का पानी मरा हुआ है
          –---–-------------
     @  दिनेश चन्द्र, मुगलसराय
          30 मई / 2021

©Naina ki Nazar se
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