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मै डूब कर भी ,समन्दर को आजमा तो सकता था अश्क बन कर

मै डूब कर भी ,समन्दर को आजमा तो सकता था
अश्क बन कर उन आंखो तक ,आ तो सकता था
कही कांच बन के चुभ न जाऊ उनके नाजुक पावो मे
टूटकर बिखरा हू, हमें वो चुन के उठा तो सकता था
सारे गुनाह कबुल थे उनकी बेपनाह मोहब्बत मे
बेगुनाह ही सही चेहरे को शर्म से छुपा तो सकता था
ऐ सफर है जिन्दगी का कभी मंजिल दूर तो कभी पास
मिलेगे किसी मोड़ पे ,ऐ आसरा दिला तो सकता था......

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  #achievement shayri
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