चारों तरफ से उठा है शोर नहीं होने देंगे सुख की भोर सट्टा व्यापार जुआ बदनाम आदमी है आदमी का चोर परिंदे भी डरते हैं आशियाना से दिन में घना अंधेरा घनघोर अंदर अंतर्मन में जाले बाहर चेहरे लगाए जोर कितने सारी गर्दनें लटकी उन पर दिखे बस एक ही डोर देख देख कर हालत वक्त की अब मेरा मन बन गया ठोर जिंदगी हो गई सूखे पत्ते जिसको खा गए बेगाने ढोर सुशील उलझा बीच मझधार में ना पांव लगे कहीं ना लगे छोर— % & चारों तरफ से उठा है शोर नहीं होने देंगे सुख की भोर सट्टा व्यापार जुआ बदनाम आदमी है आदमी का चोर