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माना तन जागा है लेकिन मन है सोया पाया कम है जीवन

माना तन जागा है लेकिन मन है सोया
 पाया कम है जीवन में, हमने ज्यादा खोया
 निज संस्कृति, निज भाषा, निज गौरव का हमें भान नहीं
 आडंबर व ओछे वैभव पर करना उचित, अभिमान नहीं
 काटना होगा वही, जो हमने है बोया
 माना तन जागा है लेकिन मन है सोया

मद, ईर्ष्या, मोह, अहंकार में जैसे थे लिप्त कौरव
अपनों से कर राग, द्वेष, इस बात का क्या गौरव
दुर्गुण है भीतर जिसके, वह जीवन भर है रोया
माना तन जागा है लेकिन मन है सोया

©Kamlesh Kandpal
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