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यादों पे पहरा देने वाले तो बहुत मिले, पर यादों को

यादों पे पहरा देने वाले तो बहुत मिले,

पर यादों को संवारने वाले नहीं मिले।

पर कुतरने वाले तो बहुत मिले,

पर मरहम लगाने वाले नहीं मिले।

अंधियारा करने वाले तो बहुत मिले,

पर चिरागों में रोशनी जलाने वाले नहीं मिले।

चांद_तारों का ख्वाब दिखाने वाले तो बहुत मिले,

पर सोच पर खरा उतरने वाले नहीं मिले।

बातों का पतंगर बनाने वाले तो बहुत मिले,

पर मतलब सही निकालने वाले नहीं मिले।

कदमों को गुमराह करने वाले तो बहुत मिले,

पर सच्चे हमराह नहीं मिले।

नजरों से तीर चलाने वाले तो बहुत मिले,

पर निगाहों से अमृत बरसाने वाले नहीं मिले।

इश्क़_ए_दर्द जताने वाले तो बहुत मिले,

पर गहराई_ए_इश्क़ बताने वाले नहीं मिले।


मतलबी रिश्ता दिखाने वाले तो बहुत मिले,

पर संबंध_ए_असलियत निभाने वाले नहीं मिले।

खुशी ज़िन्दगी का बांटने वाले तो सबको मिले,

पर दर्द संतोष का बांटने वाले नहीं मिले।।

WRITTEN BY (संतोष वर्मा) आजमगढ़ वाले 
खुद की ज़ुबानी पर..... ...
यादों पे पहरा देने वाले तो बहुत मिले,

पर यादों को संवारने वाले नहीं मिले।

पर कुतरने वाले तो बहुत मिले,

पर मरहम लगाने वाले नहीं मिले।

अंधियारा करने वाले तो बहुत मिले,

पर चिरागों में रोशनी जलाने वाले नहीं मिले।

चांद_तारों का ख्वाब दिखाने वाले तो बहुत मिले,

पर सोच पर खरा उतरने वाले नहीं मिले।

बातों का पतंगर बनाने वाले तो बहुत मिले,

पर मतलब सही निकालने वाले नहीं मिले।

कदमों को गुमराह करने वाले तो बहुत मिले,

पर सच्चे हमराह नहीं मिले।

नजरों से तीर चलाने वाले तो बहुत मिले,

पर निगाहों से अमृत बरसाने वाले नहीं मिले।

इश्क़_ए_दर्द जताने वाले तो बहुत मिले,

पर गहराई_ए_इश्क़ बताने वाले नहीं मिले।


मतलबी रिश्ता दिखाने वाले तो बहुत मिले,

पर संबंध_ए_असलियत निभाने वाले नहीं मिले।

खुशी ज़िन्दगी का बांटने वाले तो सबको मिले,

पर दर्द संतोष का बांटने वाले नहीं मिले।।

WRITTEN BY (संतोष वर्मा) आजमगढ़ वाले 
खुद की ज़ुबानी पर..... ...

पर..... ...