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अब दिन ढ़ले, शाम ढ़ले, तेरा ख़याल नहीं आता । मैं खुद

अब दिन ढ़ले, शाम ढ़ले, तेरा ख़याल नहीं आता ।
मैं खुद के लिए ज़वाब ढूंढता हूँ, तेरा सवाल नहीं आता ।
जब भी उधेड़ता - बुनता हूँ , अपनी कमरे की चीज़ें,
माँ की ताबीज़ तो मिलती है, पर तेरा रुमाल नहीं आता ।।
अब दिन ढ़ले, शाम ढ़ले, तेरा ख़याल नहीं आता ।। 

     #yqhindi #yqdidi #रुमाल #ख्याल #शाम #दिन #ताबीज़
अब दिन ढ़ले, शाम ढ़ले, तेरा ख़याल नहीं आता ।
मैं खुद के लिए ज़वाब ढूंढता हूँ, तेरा सवाल नहीं आता ।
जब भी उधेड़ता - बुनता हूँ , अपनी कमरे की चीज़ें,
माँ की ताबीज़ तो मिलती है, पर तेरा रुमाल नहीं आता ।।
अब दिन ढ़ले, शाम ढ़ले, तेरा ख़याल नहीं आता ।। 

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