तुमसे मिलकर तुम्हारे कंधों को भिगोना है मुझे अश्रु भरे हैं नेत्रों में,इनका वजन कम करना है मुझे। अंदर के सन्नाटों से घिरीं है ये बोझिल श्वासें, तुम्हारे कंधों पर सिर रखकर खुली हवा में सांस लेना है मुझे। मेरे अंदर की भीड़ मुझे बाहर नहीं निकलने देती, घुटी हुई हैं साँसें,अंदर से मार रही हैं मुझे। मेरे मरणासन्न से विचारों को तुम जीवित कर देना, अपने प्रेम के गंगा जल से पुनर्जीवित कर देना मुझे। ©Richa Dhar पुनर्जीवन✍️✍️✍️