किसी अजनबी की रातों के ख्वाब हुआ करते थे, हम भी किसी जमाने में गुलाब हुआ करते थे। जो प्यास को मुकम्मल कर दे होंठों से लगाकर, वो आख़री बचे हुए घूंट की शराब हुआ करते थे। मंजिल की चाह थी या फिर जवानी का जोश, हम तूफान से भिड़ने वाले सैलाब हुआ करते थे। खली वक्त में किसी का मन बहलाने के लिए, कहीं दूर पड़ी अलमारी की किताब हुआ करते थे। अब तो फर्क भी नहीं पड़ता कोई चला भी जाएं तो जो कभी किसी को पाने के लिए बेताब हुआ करते थे। #Gulaabhuaakartethe #deepshayari #awosmshayari #johnelia #gulzar