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हर मोहरे की मूक विवशता चौसर के खाने क्या जाने ? मं

हर मोहरे की मूक विवशता
चौसर के खाने क्या जाने ?
मंजिल के गुमनाम भरोसे 
सपनो के लाख बहाने 
मै तुम्हें पलटना चाहता हूं
तुम बाजी ही पलट देते हो
मुझे खुद गिरा कर 
मेरा हाथ थाम लेते हो
वक्त से जंग है मेरी 
क्या क्या खेल दिखाते हो?

©Meri Kalam
  #वक्त़#