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करती वो मेरी तारीफ लेकिन अपने घरवालों से सामने जब

करती वो मेरी तारीफ लेकिन अपने घरवालों से
सामने जब होती मुझसे असहमत ही होती
अब तो हद हो गयी भाषा भी मेरी ही बोलती
लेकिन मेरे सामने मुझे ही गलत ठहराती।
धीरे धीरे अब वो भी बदलने लगी है
सुनाती नही मेरी अच्छाई मुझे ,गैरो को सुनाने लगी है
उसे लगता है कि मैं जीत रहा हूँ वक्त के साथ
क्या पता उसे अब वो खुद से हारने लगी है
मेरा चुप हो जाना उसे भाता है
दूसरे को सुनाती मैं वरसु तो चुपके से सरक जाता है
चलो मेरी परेशानी में तुझे जीत दिखती है
लेकिन कभी मेरी जगह खुद को रख कर देखना
अपनो का दर्द कितना टीस देती है

©ranjit Kumar rathour
  असहमत और सहमत

असहमत और सहमत #समाज

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