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"अशोक पेड़ की छांव है मां की ओढ़नी का झूला है इस

"अशोक पेड़ की छांव है
 मां की ओढ़नी का झूला है
 इसी में खेलना है, इसी में सोना है
 ओढ़नी की सुगंध में 
मां का वात्सल्य छिपा होता है
 कभी-  कभार मां आ जाती है संभालने 
सुबह से लेकर शाम तक 
मां को पत्थर ढोने है 
बच्चों के भविष्य के लिए 
कभी ओढ़नी की ओट से
 बच्चा देखता है मां को
 और कभी मां काम करती हुई 
 देखती है,अपने लाल को
 एक बजे दूध पिलाती है,पांच बजे सीने से लगाती है 
और खिलखिला उठता है बच्चा,मां के आंचल में 
अद्भुत है मां का आंचल,अद्भुत है मां का प्यार।"

©Azaad Pooran Singh Rajawat
  #अद्भुत है मां का आंचल, अद्भुत है मां का प्यार#

#अद्भुत है मां का आंचल, अद्भुत है मां का प्यार# #कविता

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